पहली मुलाकात सा


 
ऐसा क्यों होता है कि

हमें अनजाने चेहरे 

अजनबी नए चेहरे अच्छे लगते हैं !

 

वो उनसे पहली मुलाकात -

बिना किसी पूर्वाग्रहों के 

बिना किसी जानने के भार के

बिना किसी पहचान के प्रतिबिम्बों के मन में

...भाती है मन को बहुत 

 

काश कि सदा बनें रहें हम अजनबी से ..

मन रहे हल्का 

भूल जायें पिछली सभी पहचान

मिट जायें पिछले सारे प्रतिबिम्ब स्मृति से

और हर बार मन मुस्काता सा मिले

पहली मुलाकात सा ...


तारीख: 27.08.2017                                    भुवन पांडे









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