प्रेम गीत

सुनो,
मै भी लिखना चाहती हूँ
एक प्रेम गीत
पर जाने क्या
कुछ खोया सा है
ना शब्द मिल रहे हैं
ना भाव जाग रहे हैं
शिकायतो के बोझ तले
कहीं दब गये हैं सारे उल्लास

तो चलो ना..
भींगते है हम भी
उस एहसास के बारिश मे
जिसमे गीला होकर भी
रह जाता है मन अतृप्त
शायद तब उगे
कोई महकती सी शब्द लता
तब रचे कोई गीत
जो अमर हो हमारे नाम से
एक प्रेम गीत
मै भी लिखना चाहती हूँ ।।                               
 


तारीख: 06.06.2017                                    साधना सिंह









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