पुराने गांव में

 

धूप बहुत है मेरे बंधु
चलो चलते हैं छांव में
समय बहुत बदल गया है
लौट चलते हैं पुराने गांव में।।

ऊंची बिल्डिंग महल छोड़कर
चलते हैं खाली पांव में
देखें क्या-क्या बदल गया है
मेरे छोटे से पुराने गांव में।।

बैठ वहीं हसी मजाक करेंगे 
कागज की छोटी-छोटी नाव पे
तुम भी पत्ता बिछकर लाना 
अंगूठी बनाएंगे बचपन के भाव में।।

इधर उधर घूमेंगे भटकेंगे
ढूंढेंगे हम अपने गांव को
मिलकर और बातें करेंगे
चलो चलते हैं पुराने गांव में।।

पीपल की उस मीठी छांव में
बरगत की लंबे लंबे राव में
झूलेंगे झूला सब मिलकर
आओ मिलते हैं पुराने गांव में।।

जहां मिलेंगे भैंस बकरी
पंछी मिलेंगे घर द्वारों में
मिलने से बहुत दिन हो गया
आओ मिलते हैं दरबारों में।।
आओ मिलते हैं दरबारों में।।


तारीख: 06.04.2020                                    संदीप कुमार









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