"हे राम तेरे नाम पे अजब गोरख धंधा है,
खुद को सन्यासी कह दे ये कैसा बंदा है,
हत्या, लूट, दंगा और इतनी ढेर साजिशें
प्रभु के नाम मंदिर देश का लगता चंदा है,
तीखी नमकीन प्लेट में जाम भरी गिलासें
यूँ उजले लिबास वालों का दामन गंदा है,
भगवा में खून पोंछे भला कैसे वाज़िब है
कारोबारे-इंसानियत भी आजकल मंदा है,
पालनहार बना है फिर क्यों इतनी नफ़रतें
बच्चों की हत्या कर जरा भी न शर्मिंदा है,
अदालत, कानून, दलीलें औ वहीं इनायतें
मुंसिफ बदलकर ये जनता कैसे जिंदा है,
वक़्ते-रहमत की घड़ी में ये कैसी रहमतें
ज़ुल्म पर खामोशी या करते कड़ी निंदा है,
वो चुप है तू भी चुप रहा कर ए अश्विन
तैयार तेरे मुंह वास्ते पट्टी गले को फंदा है,,