यह एक जीत है हमारी
युग युग से हारती आई नारी
कभी तलाक तो कभी दहेज़ के नाम पर
फीरी मारी मारी
अब है नर समाज की बारी
न डरने वाली ये अबला नारी
घुट घुट कर जीने वाली
कभी ज़हर, तो कभी जलाकर मारने वाली
अब न रहेगी ये बेचारी
सास के ताने सुनकर
ससुर की सेवा कर
पति और बच्चो पर मर मिटने वाली
अब पहचानी जायेगी इसकी ख़ुद्दारी
युग युग से हारती आई नारी
अब न रहेगी ये बेचारी!!