तीन तलाक़

यह एक जीत है हमारी 
युग युग से हारती आई नारी 
कभी तलाक तो कभी दहेज़ के नाम पर 
फीरी मारी मारी 


अब है नर समाज की बारी 
न डरने वाली ये अबला नारी 
घुट घुट कर जीने वाली 
कभी ज़हर, तो कभी जलाकर मारने वाली 
अब न रहेगी ये बेचारी 


सास के ताने सुनकर 
ससुर की सेवा कर 
पति और बच्चो पर मर मिटने वाली 
अब पहचानी जायेगी इसकी ख़ुद्दारी 
युग युग से हारती आई नारी 
अब न रहेगी ये बेचारी!!
 


तारीख: 27.08.2017                                    सारा ख़ान









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