तू आई (दीपावली) 

तू आई 
मेरे जीवन के अंधकार को 
दूर भगाने आई 
तू आई 

इस असित - अमावस - विभावरी को
नासमझी की जटिल लड़ी को 
काम - क्रोध - लालच - मद लिप्त
आसुरी - खोखली मनोवृत्ति को 

दूर भगाकर - दीप जलाकर - स्नेह लुटाकर
हाथ पकड़ - 
दीप्ति से मिलाने आई 

तू आई 
मेरे जीवन को अंधकार में 
रोशन करने आई 
तू आई 

अय्याशी और व्यभिचार में 
मधु विलास के हर प्रकार में 
छल प्रपंच और कपट व्याज से
अर्थ सिद्धि और बल प्रचार में 

आखेटक के जाल में फंसी
इक कपोत सम इस जीवन को 
मुक्त कराने आई

तू आई 
मुझ निरुपाय को विकट काल में
युक्ति बताने आई 
तू आई 

कण कण उजास है, मन आसूदा
मिलन प्यार शुभ लाभ की इच्छा 
धवल ज्योति से उर को रौशन 
करा रहा दीपों का गुच्छा 

मैं - मैं बस मैं को जपते इस 
कालकूट से सने हृदय में 
सुधा बहाने आई - 

तू आई 
नवल ज्योति के नव प्रकाश से 
इस जीवन की तम-शुचि पर 
हिमपात कराने आई 

तू आई 
मेरे जीवन को स्वर्ग बनाने 
मार्ग - भ्रमित को मार्ग बताने 
दीपों का रथ चढ़ आई 
तू आई 


तारीख: 24.12.2017                                    आनंद कृष्णा









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