उसके बेकल मन को

उसके बेकल मन को जाने
कब समतल तान मिलेगा

सुबह हुई आशा ललचाई
और शाम निराशा मुस्काई
दिन भर भागा गिरा फिरा
लेकिन बात नहीं बन पाई
देर साँझ घर लौट चला वह
खुद को सोचें छला छला वह
डिग्री माथे पर मार के बोला
जाने मुझको कब काम मिलेगा

उसके बेकल मन.....................

माँ ने सब देवी देवता पूँजे
मन्नत मांगे है ऊँचे ऊँचे
बहन ने कई व्रत रखा है
बाबा का मनोरथ रखा है
बीबी मन में बाँधे है
अरमानों की भारी गठरी
कहती मागुंगी सब धीरे धीरे
जब उनको कोई काम मिलेगा

उसके बेकल मन.................

घर में बड़ी जिम्मेदारी है
रिश्ते नाते दुनियादारी है
रूके पड़े है काम कई सब
बस रूपयों की लाचारी है
अंधेरा अंधेरे से बतियाकर
नींद ठीठोली करें जगाकर
सपना देखे जाग जागकर
कि कल कोई काम मिलेगा

उसके बेकल मन........

 


तारीख: 20.03.2018                                    रामेश्वर मिश्र









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