विधवा विवाह


साथ जो छुटा प्रिय तुम्हारा 
समय ने मुझको क्यों मारा 
रूठा रूठा सा लगता है 
अब तो मुझको जग ये सारा|

तुम बिन जीवन अब है जीना 
दुःख ये मेरा क्या कम था ?
ले गये रंग तुम जीवन के
कोरा कोरा तनमन ये था|

जीवन अब भी सबका जीवित 
जीवन मुझको पर वर्जित है 
बह गया जीवन अश्रुधार में 
नैनों में अश्रु बस संचित हैं|

श्वेत वस्त्र सौगात तुम्हारी 
मैंने अब इसको पाया है 
नारी हूँ मैं नर की जननी 
जग ने हाँ इसे  भुलाया है|

खुश होने को दिल है करता 
सहम सहम ये फिर डरता है
चाह मेरी जो दिख जाए तो 
जग मुझको थू थू करता है|

क्या ही तो अपराध है मेरा 
क्या जो मुझसे पाप हुआ?
तुमको मिलता ब्याह दूजा
मेरे लिए अभिशाप हुआ||   
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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