अब मिल के भी

अब मिल के भी, आखिर क्या हो जाना है, 
सिर्फ दो पल का साथ, फिर, खो जाना है।               
सच तोः यही है कि अब भी दूर हो मुझसे, 
होता, यह एहसास मुझे हर पल रोजाना है।  
अब मिल के भी, आखिर क्या हो जाना है।
 
देखे थे, जो सपने उनकी सतह, सुनहरी है, 
असल में यह ज़िंदगी, तपती एक दुपहरी है, 
सपनो की खातिर, जलने से, इसे बचाना है। 
अब मिल के भी, आखिर, क्या हो जाना है। 

थोड़ी बाकी थी, उम्मीद, सो हम मिला किये,
रोये मिल के और इस ज़माने से गिला किये,
मगर, न समझे वह, न ही, हमे, समझाना है। 
अब, मिल के भी, आखिर, क्या, हो जाना है।

उम्मीद, लगाई, क्यों, हमने यह गलती की,
इसी, भूल का, मिल के अब, देना हर्जाना है। 
अब, मिल के भी, आखिर, क्या हो जाना है।


तारीख: 20.06.2017                                    राज भंडारी









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