मेरे लिए सबसे आसान था, तुझे दिल में बसा लेना।
पर तुझे मेरे जज्बात कहना, नामुमकिन सा लगता है।
शर्म में समा जाती हूँ, तुझे सामने पाकर मैं।
क्या का, क्या कह जाती हूँ, पता ही नहीं चलता।
ये तन मेरा, मेरा नहीं, अब तू बसता है इसमें हर पल।
ये साँसें मेरी, तेरी रूह से उधार ले रखी हैं मैंने।
बहानों से, तेरे करीब रहने की कोशिश करती रहती हूँ।
बस यही ख्वाहिश है, तू मेरी आँखों में मुझे देख ले।
तू मेरा कान्हा है, तेरी मीरा बनकर रहना चाहती हूँ हमेशा।
तेरे चेहरे से अपनी निगाहें, हटा ही नहीं पाती हूँ।
डर लगता है, उस पल से, कहीं खुशी से मर न जाऊँ मैं।
जब अपने एहसासों को, तेरे आगे कह पाऊँगी।