आशा का सवेरा

घनघोर काली रात है ,
बिछी हुई बिसात है |
मनुष्य ही मनुष्यता का ,
रच रहा विनाश है |

अनेक काले साए हैं ,
लूट और खसोट के |
मौत की दहशत से ,
भर गया है पाप का घड़ा |

इक किरण उजली सी ,
ये सन्देश देती है |
अब घड़ा पाप का ,
फूटने ही वाला है |

जुर्म कत्लेआम का ,
निशान मिटने वाला है 
है सवेरा होने को ,
बिखरने न देना तुम अपनी उम्मीदों को |

खोई हुई आशा को ,
फिर से ढूँढ लाओ |
है धरा की ओर से ,
उस क्षितिज के छोर तक,
जीत तुम्हारी लिखी जीत तुम्हारी ||


तारीख: 10.06.2017                                    पूनम पाठक









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