ये कठोर सत्य के
वज्रों से प्रशोभित नूर
मन तम में जुगनुओं की भाँती
राह ढून्ढ रहे हैं.....
इन जुगनुओं के बीच का तिमिर
अर्ध बोध अर्ध सुषुप्ति में
पनाह ढून्ढ रहा हैं...
इन दो दशाओं के
संघर्ष में
मैं -
संदेहों का पिंड
अधैर्यता का द्रावक
अकर्मण्यता का प्लास्मा
तुम्हारी रुधिरों में
अवर्णित
अरूपित
अस्तित्व ढूँढता हुआ
बह रहा हूँ
बहता जा रहा हूँ......