बारिश

बारिश वाली एक वो शाम थी,
सड़क किनारे झगड़े थे जब हम,तर-बतर पानी में भीगते हुए
कभी रूठते , कभी मनाते ,सरसराती ठण्ड से कांपते हुए।

बारिश वाली एक वो शाम थी ,
जब एक छोटी सी छतरी ले के मैंने तुमको घर तक छोड़ा था ,
वो अदना सी छतरी बारिश के तेज़ झोंके रोक सके इतनी कहाँ औकात थी उसकी,
वो तो तुम्हारे साथ चंद लम्हे चुराने का एक बहाना था।

बारिश वाली एक वो शाम थी,
जब तुम मिलने नहीं आये थे,
खिड़की के किनारे बारिश की बूंदों से खेलते हुए ,
न जाने कितने घंटो हमने फ़ोन पर, बातें करते हुए बिताए थे।

बारिश वाली एक शाम आज भी है पर ,
अब हम झगड़ते नहीं है,
अदना सी वो छतरी आज भी है कहीं, पर अब हम साथ चलते नहीं है।
अब हम साथ में बारिश को साथ में बैठकर तकते ज़रूर है,
पर करने को बातें नहीं है।

बारिश वाली वो शाम तो आज भी आई है,
पर बूंदों में अब वो बात नहीं है।


तारीख: 19.06.2017                                    सुरभि चॅटर्जी









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