शीत रथ पर चुपके चुपके
बसंत आया फिर छुप छुपके !
अम्बर धरा कलियाँ तरूणाई
गा गा कर कोयल शरमाई !
यौवनता पर सूर्य है आया
आम्र पलाश मदिरा नहाया !
बह रही हवा यूँ बसंती
गीत गा रही हो रति !
प्रेम रंग की लाली छाई
अधरों पर व्याकुलता लायी !
धरती आकाश हैं मिलने को हैं
सुबह ही सूरज हैं ढलने को हैं !