जैसे हिमालय के वक्षस्थल से
निर्मल गंगा निकलती हो
जैसे असीम क्षितिज पर इन्द्रधनुषी छटा बिखरती हो
जैसे तपती बंजर धरती पर बारिश की बूंदें गिरती हों
बस ऐसा ही लगता है जब तुम
मेरी गोद में चढ़कर
सीने से लिपटकर, बांहों में झूलकर
मेरे गालों का चुंबन करती हो
बेटी, तुम कितनी अच्छी हो...
जैसे सरिता तटबंधों का आलिंगन करती हो
जैसे नभ पर तारों की बारात सी सजती हो
जैसे कोरे कागज पर कोई महाकाव्य रचती हो
बस ऐसा ही लगता है जब तुम
मेरी उंगली थामकर
छोटे-छोटे पग भरती, ठुमक-ठुमक चलती हो
बेटी तुम कितनी अच्छी हो...