इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ो को

इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ो को,
                     कविता का तुम यूँ नाम ना दो

इन सोये हुए जज़्बातो को,
                   चाहत का फिर इलज़ाम ना दो 

क्षण भर की मरती दुनिया में,
                    हर क्षण मरती अब साँसे हैं 

इन बंद हो चुकी साँसों को,
                   जीने का तुम पैगाम ना दो 

इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ो को,
                   कविता का तुम यूँ नाम ना दो

जीना मरना बेमानी हैं,
                   ये जान चुकी अब लाशें हैं 

इन चलती फिरती लाशो को,
                   दफ़नाने का फ़रमान ना दो

इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ो को,
                   कविता का तुम यूँ नाम ना दो

रस से डूबी इस महफ़िल में,
                    अब होंठ हमारे सूखे हैं

सुख चुके इन होठों को,
                 साकी फिर कोई जाम ना दो 

इन बिखरे हुए अल्फ़ाज़ो को,
                   कविता का तुम यूँ नाम ना दो



तारीख: 18.06.2017                                    सौरभ पाण्डेय









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