दीप जलाकर चलना होगा

भटकते मुसाफ़िरों को
अनजानी धुंधली राहों पर 
अवसाद- अंधेरों के बीच 
हवाओं से मिटते निशानों को 
नई राहों से गढ़ना होगा 
दीप जलाकर चलना होगा 

जंजीरों में जकड़ा जीवन 
साँसों पर ही मिटता तन-मन
सहमी, बेचैन निगाहों से
हर लम्हे को पीना होगा 
फूल बन कर खिलना होगा 
दीप जलाकर चलना होगा 

समुद्र की उत्ताल लहरों की तेजी से 
डगमग-डगमग डोलती नावों को 
बुझती- बनती उम्मीदों पर 
नये रंगों से, नई सोच को
स्वर्णिम अक्षरों से लिखना होगा 
दीप जलाकर चलना होगा


तारीख: 17.11.2017                                    आरती









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