एक बार फिर से सब वही है
कुछ मंजिलो की राहे गलत तो कुछ सही हैं
लौ की चिंगारी फिर से भभकने को है ,
ये दिल कहता है कुछ बाते अभी अनकही है
थाम के इस नब्ज़ की धड़कन सोच फिर से
क्या तेरा इरादा भी वही है
आस थी की छूएँगे साथ हम आस्मा का फलक
फिर चाँद के वुज़ू करने की ज़िद्द भी ग़लत नही है
फिर से आ खड़े हो गए हम उसी मोड़ पर
अब बता तू ऐ मर्ज़ी के मालिक तेरा मजमुआ बदला या फिर वही है।