इक छोटी से अभिलाषा 

अनाम रिश्तों का ये सिलसिला
बस यूँ ही अनवरत चलता रहे 

धवल चांदनी के आँचल में नित्य
ख्वाब चाँद का कोई पलता रहे,
 
हर भोर की लालिमा के रंग में
किरणों का रंग यूं ही घुलता रहे 

लौटकर आने का वादा करके
सूरज हर शाम यूँ ही ढलता रहे

काले बादलों की अंजुरी से पानी
गोरी के गालों पर फिसलता रहे 

हिमशिखर से चली नदी का जल
जाकर सागर से यूँ ही मिलता रहे 

अंधकार की वादियों से चलकर
उम्मीद का दीप यूँ ही जलता रहे

मेरी अभिलाषा है तेरी सरगम से
दिल का दर्द यूँ ही छलकता रहे


तारीख: 20.10.2019                                    किशन नेगी एकांत









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