एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

इस मंज़िल पर बैठे देर हुई

फ़िर राह बना एक और नयी

माना है सब कुछ पास यहाँ

पर ख़ोज नयी मंज़िल का निशां

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

एक ऐसा सफ़र है जीवन तेरा

हर मंज़िल इस में नया सवेरा

इन उजालों में ख़ुद को क़ैद न कर

बस कुछ देर ठहर और कदम बढ़ा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

आख़िर मुश्किलों से डरना कैसा

मरने से पहले मरना कैसा

समय की धारा,बहती नदियाँ

सब कहती हैं बढ़ता जा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

यहाँ जो भी है वो बदलेगा

ऐसा कुछ भी नहीं जो रह लेगा

इन रिश्ते, नाते, प्यार, वफ़ा से

न अपने लिये कोई जाल बना

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

यहाँ मिलता सब कुछ करमों से

नहीं पाता कोई बस जनमों से

ये बात अगर तू समझ गया तो

नही आसमां भी दूर बड़ा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

फ़िर न बैठ यहाँ बस चलता जा

और दुनिया में प्यार लुटाता जा

तू जो भी चाहेगा पा जायेगा

बस मंज़िल को अपना घर न बना

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

कभी औरों पर इल्ज़ाम न कर

यूँ किस्मत को बदनाम न कर

बहारें आयें या न आयें

तू पतझड़ में फूल खिलाता जा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

कभी बादल भी ग़म के छायेंगे

और अपने हीं तूझे सतायेंगे

रख राह सच की तू पकड़

और गीत प्यार के गाये जा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

 

इस मंज़िल पर बैठे देर हुई

फ़िर राह बना एक और नयी

माना है सब कुछ पास यहाँ

पर ख़ोज नयी मंज़िल का निशां

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा

एक ख़्वाब नया फ़िर और सजा


तारीख: 22.09.2017                                    प्रमोद राजपुत









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