न घर की गौशाला में न गरीब के खेत खलिहानों में,
हाँ तू नीलाम हुई है इन राजनैतिक बूचड़खानों में।
तू गाय है नही जानती इन भक्त इंसानो को
तू तो ठहरी एक जानवर इनने बेच दिया भगवानों को।
बीमार पड़ी तू गौशाला में या फिरती बंजर वीरानों में,
और बेचने तुझे खड़े सब राजनैतिक मैदानों में।
ये काजू-बादाम का पागुर करते है इठलाते है,
दहलीज पे भूखी भले खड़ी है गर तू डंडा मार भगाते है।
जो मज़बूर हैं तुझे खिलाते वो जहर की शीशी अपनाते है,
फिर बेशर्म सफेदपोश तेरे मालिक की बोली लगाते है।
जबान अगर होती तोखुद कहती मैं कसम कसम बैल की खाती हूँ,
प्यार न बांटो बना मां खुद की, मैं अपने बछड़े को दूध पिलाती हूँ।
मैं ठहरी दूध सी ऊजर् तुम गिरगिट बेईमान से हो
हैवानियत तुम्हारी रगों में और कहते हो इंसान से हो।
धर्म-जाति में न बाँट मुझे तू मुझे जानवर ही रहने दे
खुद से दिखने वालो की रक्षा कर मुझे जंगली रहने दे।
शेर शेर ही रहता उस जंगल में भेड़िया भेड़िया दिखता है।
इंसानी मुखौटा ठीक नहीं है
पैसों में पल-पल बिकता है
आज लगता है कि वापिस उसी जंगल को चली जाऊं में,
वो भी छोड़े न तुमने अपना वो परिवार कहाँ से लाऊँ मैं।
वो दिन है दूर नहीं जब हमसब जानवर भाग जाएंगे,
वापिस हमे लाने की खातिर सब
एक-दूजे को खाएंगे।
बना लेना ठाठ-बाट सब इंसानों से घबराओगे,
कुत्ते भी वफाई छोड़ देंगे तुम शेरू किसे बुलाओगे ।
न आएगा कोई जब तुम्हारे गला फाड़ चिल्लाने से,
याद आएगा हौसला मिलता वीराने में हमारे रंभाने से।
अपने उस दिमागी घड़े को जब खुद तुम छूंछा पाओगे,
तब गला फाड़ चिल्लाओगे हाँ गला फाड़ चिल्लाओगे !
आ जाओ ऐ जानवरो वापस सब,
इंसानियत तुम्ही सिखाओगे!