हे बंसती शाम
लेकर आ
मेरे महबूब का पैगाम
मुझे सताती हो
रूलाती हो कभी
उसके होठों तक भी
लाओ मेरा नाम।
हे बंसती शाम
जाओ उसे छेड़ आओ
उसके मन में भी हर्ष
पैदा करो उत्साह भरो
मुझे ही क्यों !
उसे भी पिलाओ
मेरी यादों का जाम।
हे बंसती शाम
मदहोश कर दो उसे
खीचीं आये मुझ तक
भुला दो सारी कड़वाहट
मिठास घोल दो
प्यार की शुरूआत हो
बंद हो बीच का संग्राम
हे बंसती शाम
रंग दे उसे अपने बासंती रंग में
मेरी भी जिंदगी में
ताकि कुछ रंग
अपनी जगह बना ले
खलती है ये बेचैनी
मुझे भी सुबह ओ शाम