हे जननी जन्मभूमि

हे जननी जन्मभूमि हे जनयत्री मातृभूमि।।
हे धात्री धरा कितने ही तेरे पावन नाम।
अतभूत स्वरूप हे सर्वगुण सम्पदामयी।।
तुझे शत शत नमन शत शत प्रणाम।
सावन बसंत भादों ऋतुओं की श्रंगारमयी।।
सदा प्रकृति रूप से पोषित करती निष्काम।
वन उपवन पेड़ पौध लताएं पुष्प सजी।।
जन जन को देती अंशदान तुम अविराम।
नित हिरण्य दिव्य दिवाकर करें आराधना।।
नित अर्पित तेरे चरणों मे किरणें ललाम।
रैन तिमिर हर चंद्र बिखेरे ध्वल ज्योत्सना।।
अद्वितीय मंजुल कौमदी करती तम विराम।
आँचल में समाहित असंख्य निर्झर शैवालनी।।
विष्णुपदी मंदाकनी की तुम ही पावन धाम।
हे जननी जन्मभूमि हे जनयत्री मातृभूमि।।
हे धात्री धरा कितने ही तेरे पावन नाम।
अतभूत स्वरूप हे सर्वगुण सम्पदामयी।।
तुझे शत शत नमन शत शत प्रणाम।


तारीख: 20.10.2019                                    नीरज सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है