हे परम पिता, तुम चित्रकार


धरती के माथे सजा हिमालय
प्रकाश पुंज लिए सूर्य उदय
कल कल नदियों से किया श्रंगार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
कही मरुस्थल कहीं हरियाली
पावन वसुंधरा हरी भरी
सजाया हिमगिरि उच्च विशाल
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
निशा भेदता तम नष्ट हुआ
चारु चंद्र ने नभ तल छुआ
तुमने दिया धरा को हीरक हार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
नभ मंडल के जगमग तारे
पौध पक्षी खग पर्ण कितने सारे
अनगिनत पुष्प का सुगंध उपहार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
धूप छाँव की लीलाओं से
भांति भांति के भाव पिरोते
सुख दुःख विरह आभार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
जल थल नभ रचने वाले
मनमोही इंद्रधनुषी रंगों से
रंगते अलख संसार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
भिन्न भिन्न रंग रूप मनुष्य
ऋतुओं के मनमोहक द्रश्य
तुमसे रिमझिम बारिश बसंत बहार
हे परम पिता,
तुम चित्रकार, तुम चित्रकार
 


तारीख: 16.10.2019                                    नीरज सक्सेना









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