एक सहर, बेतिया बाजार में
सब लोग खड़े और भीड़ लगी
गोली चली, एक लाश गिरी और दो भागे
पूछा गया की कौन मरा ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ दूर से)
गंडक मे फिर दो कूदे
डूबे-तैरे छपरा पहुँचे
एक दरवाजे पे फिर दस्तक हुई
पूछा गया की कौन आया ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ इशारे से)
फिर याद आया साइकल छूटी
कपड़े छूटे छूटे सुराग
एक ने दूजे से फिर पूछा
पकड़े गये तो क्या होगा ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ साहस से)
मुज़फ़्फ़रपुर के कोर्ट रूम मे
जनता उमड़ी धक्कम धुक्की
फिर बहस हुई सचि-झूठी
जनता पूछी क्या फ़ैसला हुआ ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ फिक़्र से)
ज़ंजीरों मे बाँध उसे
ले आए सेंट्रल जेल गया
उसकी आभा से सब औत प्रोत
पूछे कहाँ वीरता का स्रोत ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ आस्चर्य से)
फिर एक सवेरा शांत हुआ
कवि हृदय आक्रांत हुआ
स्वराज कहाँ गुमनाम हुआ
क्या पुत्र .व्यर्थ बलिदान हुआ ?
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ दर्द से)
महीने साल दसक बीते
फिर हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ
एक रोज डाकिये से पत्र मिला
क्यूँ पता देख मैं मुस्काया ?
शहीद "बैकुंठ शुक्ल" नगर !
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ फख्र से)