सुबह की लाली में है घुला सा
मय सा बनकर चढ़ रहा है
शाम को अपने ओट में लेकर
आँखों से दिल में उतर रहा है
रात के परदो में है छिपा
दबे पाओं गुजर रहा है
शोहदों में है मिला जुला
कभी हमारे अंदर भी रहा है
फूँक लगा के करना कदम हर अंकित
ये रोज दिखावे कर रहा है
कोई और नहीं..
ये इश्क़ बुलावे कर रहा है।