ईश्वर की सुन्दर कृति

कुम्हलाये चेहरे की वेदना, छूमंतर हुई इक पल में, 
किलकारियाँ तुम्हारे आगमन की, कानों ने जो सुनी। 
सिरहाने पाया नाजुक-मुलायम हाथों का प्रथम स्पर्श,
इक झलक में, कर लिया मैने मातृत्व का आलिंगन ।
कपोल गुलाबी, मूंदी आँखे और घने काले केश,  
परियों के परिवेश से आयी, ईश्वर की सुन्दर कृति ।

पहला कदम, प्रथम उच्चारण, प्रथम अनुभूति के हर पल हुए स्मृति में कैद,
नन्ही अंगुलियों में पैंसिल थाम, सुनहरी इबादत लिखने चल पड़े तुम्हारे कदम । 
चित्रों में उकेरी बालमन की कल्पनायें, अभिभूत हुए शिक्षक और परिजन,
उपलब्धियों ने किया गौरवांवित, पुरस्कारों से सजा घर का हर कोना ।
हँसी-खिलखिलाहट से घर-आँगन महका, स्नेह की छाँव में बीता बचपन,
तरूणाई की नयी राहों से हुआ परिचय, अब चुनौतियों से भरा है जीवन ।

बंदिशें नहीं ये चिंतित ह्रदय की आशंकाये है, नसीहतें नहीं अनुभवों का खजाना है, 
पल-पल है अनिश्चितताओं से भरा, नख से शिखर तक तुमको अभी निखरना है
अम्बर सी अभिलाषायें है, आसमाँ छूने की ख्वाहिशें है
कुछ पूरी होगी, कुछ रहेगी अधूरी, निराश न होना कभी, ये तो मन की अवस्थायें है
चाँद की डोली में सवार होकर, खुशियों की बारात सजे, 
चाहत यही है आने वाले कल के हर पल में सुनहरे भविष्य की आहट मिले । 
 


तारीख: 20.06.2017                                    भारती जैन









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