झूम के बरसें बादल आज तृप्त कर दे
तपती धरा की प्यास
श्रम से लथपथ अन्नदाता की आस।
उमड़-घुमड़ कर काली घटायें बरस जायें आज मूसलाधार ।
तर-बतर हो जायें सड़के और गलियां
भीग जाये तन-मन और घर का आँगन,
बहा ले जाये
धूल और मिट्टी
पेड़ों की पत्तियों और फूलों से,
संग बह जाये चेहरे की व्यथा और मन का अवसाद।
कल जब दिखे स्वच्छ आकाश
खिल उठें चेहरे जैसे पहने हो नये परिधान।