जिधर इनके कदम पड़े

धूएँ सी ज़िन्दगी के ख्वाब पानी से,
डोर साँसों की नहीं हाथ में, पर चाल मनमानी से । 

दो पल की ख्वाईशें, इंतज़ार कई उम्र के,
मासूमियत फूलों सी, मगर गुनहगार कई ज़ुर्म के । 

काँच से दिलों पर निशां पत्थर के,
हर सख्स मिट्टी का खिलौना मगर, नाज़ नस्तर  के । 

मुट्ठी भर दिल में, सपने आसमानों से बड़े,
बस नापने को दो कदम ज़िन्दगी के, सौ कदम इनके पड़े ।


तारीख: 30.06.2017                                    जय कुमार मिश्रा









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