बढ़ते कदमों को स्वनिर्मित राहों का ऐतबार होता
नवनिर्माण की नव कल्पनाएं सीने में हरदम दहकती
अगर मुझे हाथों की लकीरों
और माथे की तकदीरों पर विश्वास होता
उजड़ हो जाने की मुझ में पीड़ा न होती
तो सचमुच जिन्दगी आसान हो जाती......
अगर मुझ में सिर्फ माँ-बाप के संस्कार होते
नस-नस में उनके विचार ही बहते
बेवजह की उम्मीदों का भार न होता
अगर मुझे खुदा पर विश्वास होता
टूट कर बिखरने का मुझे भय न होता
तो सचमुच जिन्दगी आसान हो जाती......
मर्यादा का मान न होता
लहरों-सी जिद्द न होती
दिल में जज्बात न होते
नेत्रों में अश्रुओं की धार न होती
जख्मों को मरहमों की उम्मीद न होती
तो सचमुच जिन्दगी आसान हो जाती.....