कहाँ है वो जिसे देखा था मैंने बचपन मे

नहीं हो वो तुम अब जिसे देखा था मैंने बचपन मे,
रास्ते थे वही, साथ था वही,
पर तुम चलती थी जैसे छुप छुपके के मेरी अचकन मे,
नहीं हो वो तुम अब जिसे देखा था मैंने बचपन मे।

आँखों की हया, गालों की सीकुड़न,
होठों पर लिए मुस्कान तेरा थोड़ा शरमाता वो चन्चल मन, 
विफर गये वो मोती सब पीरोया था जिसे हमने कुछ यादों के संग मे,
नहीं हो वो तुम अब जिसे देखा था मैंने बचपन मे।

वक्त था वो शाम का जब तुम मुझसे मिलने आयी थी,
मन मे थी हल्की सी खुशी जो अब तक हमसे प्यारी थी,
होंठों से लगा तुने मुझको बस तेरी हुँ याद दिलाया था,
सांसों मे थी हलचल तेरी पर जैसे तुझमे समाया था,

सिमट गया मैं तो तुझ तक, बस गया था तेरी धड़कन मे,
पर अफसोस नहीं हो वो तुम अब जिसे देखा था मैंने बचपन मे।

रहता था जब मैं सामने तेरे, तुम नजर भी ना मुझसे मिलाती थी,
संकोच भरे अधरो से मुझे अपना किशन कन्हैया बताती थी,
रहता था मैं ख्वाबो मे तेरे और तुम बस सोने के जिद्द मे रहती थी,
छोड़ु ना मैं कभी साथ तेरा, रुंघे गले से तु कहती थी,

गले लगा लगा तुमको सुनता था अपनी धड़कन मैं ,
पर वो तो कोई और था, जिसे देखा था मैंने बचपन मे।

वक्त बेवक्त तु जब भी कह मैं तुमसे मिलने आता था,
संग तेरा पाकर मैं भी खुद मे पुरा हो जाता था,
झूठ बोल तु घर वालों से मुझसे मिलने आती थी,
बातें क्या थी मन मे तेरे एक खत मे लिख कर लाती कर लाती थी,

जाने कब बीत जाते थे वो पल आज तक समझ नही आया,
रहता था मैं तुझमे तुझ संग तु थी मेरे मन की छाया,
होना चाहते थे हम इक दुजे के पर आ गई उसमें इक छोटी सी बाधा,
मान लिया तुमने कृष्ण मुझे अपना , बन गई तु मेरी राधा,

बस यही अफसोस रहा उस इश्क का हमारे बना पाया ना तुझे अपनी रूक्मणी मैं,
पर अफसोस इस बात का क्या करें जब हो ही नही वो तुम अब, जिसे देखा था मैंने बचपन मे ,

नहीं हो वो तुम अब जिसे देखा था मैंने बचपन मे।


तारीख: 22.09.2017                                    शुभम सिंह









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