कैसे छोड़ोगे ओ मन!
यह सुंदर वन,
यह बहता जल,
नदियां कल-कल,
पंछी,नभचर।
छोड़ पाओगे?
यह सुंदर धरती,
मनचली पवन,
जलता सूरज,
शीतल शशधर।
रात के घने अंधेरे के,
टिमटिम तारे, तुमको प्यारे।
इतने सारे असंख्य रंग।
बादल में आकार जो भरते हो।
सूरज का छिपना,ढलना,
उगना भी तो,
तुमको है कितना प्यारा।
छोड़ पाओगे?
यह जगत न्यारा!
आसमान की प्रतिकृति धरते,
अथाह समुद्र के निश्छल जल
में देखा तुमने अपना दर्पण।
कैसे छोड़ोगे ओ मन!
वर्षा की इतनी बूंदे ,
वह इंद्रधनुष,वह हरा रंग,
माटी की सोंधी खुशबू।
कैसे छोड़ोगे ओ मन!
तो अब उदास तुम मत होना,
तुम प्रेम करो
और प्रेम करो ,
इस धरती से, नभ से,
जल से,
सर्वजीव से,
प्रेम, नहीं छोड़ना
ओ मन!