मन के आँगन में भावों की, सुन्दर सजी रंगोली है
मन के द्वारे पे उतरी, कुछ अरमानों की डोली है
मन के घनघोर अँधेरे में, क्यूँ जली चेतना की ज्योति
अद्भुत आभा से दमक रहा, मन की माला का हर मोती
ना जाने ये सच्चाई है, या फिर कोई जादू टोना
भीनी सी खुशबू से महका है, क्यूँ मन का कोना-कोना
नवप्रभात का अरुणोदय, मन की बगिया में प्राण भरे
यादों के भँवरों का गुंजन, मन में अद्भुत सा गान भरे
कोयल सा मीठा सुर कोई, मन की वीणा में तान भरे
सपनों के पंखों से मन का, पंछी एक नई उड़ान भरे
उल्लास भरा अहसास कोई, साया बन मन के संग चले
सतरंगी सपने क्यूँ मन में, इन्द्रधनुष के रंग भरें
सहसा जागी अभिलाषा से, मन पगलाया सा क्यूँ डोले
चिरपरिचित पदचाप कोई, कानों में अमृत सा घोले
अलबेली सी अठखेली है, कोई अनबुझी पहेली है
या बरसों बाद मिली मन की, एक बिछुड़ी हुई सहेली है
है पुरवाई का झोंका या उमड़ी भावों की सरिता है
या फिर झरने सी फूट पड़ी, अल्हड़ सी कोई कविता है