कह रही मात गंगा की धारा

अकेले किया हैं गुजारा ।
किसी ने दिया न सहारा ।।

खो गए जो तुम्हारे थे आशिक ।
दोष क्या हैं बताओ हमारा ।।

रात बेचैनियो मे गुजारी ।
देखते देखते एक तारा ।।

हर तरफ छा गयी हैं उदासी ।
छोड़कर चल दिया वो आवारा ।।

सारे रिश्ते पराए हुए हैं ।
कह रही मात गंगा की धारा ।।

अश्क नैनों से रोये लिपटकर ।
तुमने जब हमको दिल से पुकारा ।।

दुश्मनो को पराजित किया हैं ।
दिल मेरा दोस्तों से ही हारा ।।

आके घुल जाओ मेरे बदन मे ।
'पीयूष' हैं जग मे सबसे ही न्यारा ।।


तारीख: 28.06.2017                                    पीयूष शर्मा आशिक









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है