उम्मीदों का तर्पण क्यूँ ,
जीना जीवन मरकर क्यों ….
चेहरे सबके गन्दे हैं ,
तेरा मन फिर दर्पण क्यों ….
धोखेबाजी जिसने की ,
उसका फिर संरक्षण क्यों ….
ये बसन्त का मौसम है ,
इतना ज्यादा पतझड़ क्यों ….
कोई नही होता है अपना ,
सबसे फिर आलम्बन क्यों ….
थोडा सा गर सफ़ल हो गए ,
इतना ज्यादा धम धम क्यों ….
दो पल बैठे प्रीत के ख़ातिर ,
पैसा रुपया हरदम क्यों ….