क्यूँ

उम्मीदों का तर्पण क्यूँ ,
जीना जीवन मरकर क्यों ….

चेहरे सबके गन्दे हैं ,
तेरा मन फिर दर्पण क्यों ….

धोखेबाजी जिसने की ,
उसका फिर संरक्षण क्यों ….

ये बसन्त का मौसम है ,
इतना ज्यादा पतझड़ क्यों ….

कोई नही होता है अपना ,
सबसे फिर आलम्बन क्यों ….

थोडा सा गर सफ़ल हो गए ,
इतना ज्यादा धम धम क्यों ….

दो पल बैठे प्रीत के ख़ातिर ,
पैसा रुपया हरदम क्यों ….


तारीख: 30.06.2017                                    शशांक तिवारी









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