मध्यरात्रिचांद

मध्यरात्रिचांद-1

मेरी बारी के खत्म होने पर

मध्यरात्रि के चांद ने  

मुझसे कहा, 

मित्र, तुम कल आना

मेरे ज़ख्म बेहतर दिखेंगे

कल पूर्णिमा है। 

 

मध्यरात्रिचांद-2

कल न मिलने पर 

मध्यरात्रि के चांद ने  

कहा मुझसे, 

मित्र, तुम आए नही, क्यूँ ?

"उनकी आँखों मे डूबा रहा"

झिझकते हुए, कहा मैंने

चाँद मुस्कुराया, बोला, नये ज़ख्म !

पूरे हों, तो कहना, मिलेंगे

दो हफ्ते में पूर्णिमा है। 

 

मध्यरात्रिचांद-3

आज पूर्णिमा है,

मेरे मित्र 

मध्यरात्रि के चांद ने

पूरी कर ली है परिक्रमा

पृथ्वी की 

और मैंने भी

प्रेयसी की

किन्तु दोनों 

अतृप्त,

मैं मुस्कुरा रहा हूँ ,

हम दोनों मुस्कुरा रहे हैं

अभी शेष हैं पूर्णिमा के कई चक्र। 


तारीख: 29.10.2017                                    विष्णु पाठक









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है