मैंने सोचा था

मैंने सोचा था, वो उसे भूल गया होगा,
वक्त ऐ सैलाब, बहा ले दूर गया होगा !

मयकश कब भूले हैं, मयखानों का पता 
बहे यह गंगा उलट, तो कुछ नया होगा !

जख्मों को न हरा कर ,दिल ए नादान
इनको भरने में तूने, एक नश्तर सहा होगा !

वीरान तनहा है आज, यह दिल-ए-सेहरा
रस्मे दुनिया सीख, तेरे साथ कारवां होगा !


तारीख: 22.06.2017                                    रेखा राज सिंह









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