मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया?
शाखों से गिरे जो पत्ते थे
जो हमने किए इकट्ठे थे।
कुछ मुरझा से गए,कुछ दूर उड़े
वो मेरा पीपल जब पेड़ हुआ।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।
कुछ मरते परिंदों के बच्चे थे
जो झरोखों में भी जी उठे थे।
कुछ हुए घर छोटे,
कुछ और बहाने बनते गए
वो मेरा घर जब बेगाना हुआ।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।
कुछ हल्के थप्पड़ मम्मी के
कुछ डाँट डपट घर वालों की।
वो रोक-टोक,
सौगंध कभी ज़ज़बातों की
वो माँ -बाप जब गिनती में बढ़े।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।
कुछ आवाज़ें गली -मुहल्ले की
कभी कुल्फी कभी टिक्की की।
आवाज़ें बजते बाज़ों की
ढोल-नगाड़े- ताशों की।
अब मुझसे बात नहीं करती
मुझसे नहीं अब कुछ कहतीं
वो गलीयाँ जब पिछला मोड़ बनी।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।
थे फूल यां रुई के गुच्छे थे
हथेली के संदूकों में रखे थे।
कुछ हवा ले गयी,कुछ पानी बनीं
वो सहेलीयाँ जब परदेस गयीं।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।
कुछ पीपल पर पड़े झूले से
कुछ गुच्छे पीले फूलों के।
टूट गए,मुरझा से गए
वो मेरा ननिहाल जब पहाड़ हुआ।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया
कुछ बहुत अपने से रिश्ते थे।
बाज़ार में सब ताए-चाचे थे
हर रिश्ता घर का लगता था।
सब अपने ,कोई गैर नहीं लगता था
अब अपने घर में हम अलग हुए।
सब वार के भी हम अजीब हुए
वो मायका और ये ससुराल हुआ।
यूँ मुझसे बचपन रूठ गया
यूँ मुझसे वह पीछे छूट गया।
मेरा कुछ मुझसे रूठ गया
कुछ मुझसे पीछे छूट गया।