मेरे कानों में तेरे कदमों की

मेरे कानों मे तेरे कदमों की, आहट सुनाई पड़ती है।
जब आॅखे बंद रहती है मेरी, तो सूरत तेरी दिखाई पड़ती है।

पहले तो कुछ सोचा नही, पास आता गया में।
अब जितनी दूर जाता हूॅ, तू उतनी करीब दिखाई पड़ती है।

कुछ कहना चाहता हूॅ जो दिल मे है, पर सुनने के लिए तू हाजिर नही।
मै जानता हूॅ तू मेरे पास नही फिर भी, हर जगह तेरी परछाई दिखाई पड़ती है।।

कितना याद करता हूॅ, ये लिखकर क्या बताऊॅ तुझे।
मुझे तो हर चीज में, अब सिर्फ तू दिखाई पड़ती है।।

पहले सोचता था, तुझसे मिलने का रास्ता मिल जाए।
पर अब हर रास्ते पर, सिर्फ तू ही दिखाई पड़ती है।।

जब दुखी होता हूॅ में, तो देखता हूॅ आईना।
मुझे आईने से अपनी आॅखों में, तेरी मूरत दिखाई पड़ती है।।
   
मेरे कानों मे तेरे कदमों की, आहट सुनाई पड़ती है।
                                


तारीख: 10.06.2017                                    रामकृष्ण शर्मा बेचैन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है