ना तेरी है न मेरी है

ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है,                                         
पर्वतों को देख कर तू क्यों है पीछे को खड़ा,
हाथ में ले हाथ अब तू, ये चढ़ाई सब की है,
ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है... 
 
उठ खड़ा हो सोचता क्या,  मन में तेरे भय है क्या,
तोड़ दे सब पिंजरों को, हो के अब आज़ाद आ,
पंख लग जायेंगे तेरे, हौशले से उड़ ज़रा,
आशमां होगा तेरा अब, ये दुहाई सब की है,
 ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है... 
 
हो गई है भोर, होगा ना अँधेरा अब कभी,
जगमगाएँगे सदा अब, रौशनी है मिल गई,
सूर्य सी ऊर्जा है अब तो, हर कड़ी पिघलायेंगे,
बेबशी के इन अंधेरों से रिहाई सब की है,
ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है... 
 
शिव का अब तांडव है होना, नेत्र तीजी खुल गई,
सैकड़ो सँहार होंगे, क्रोध अग्नि जल गई,
अब भष्म हो जायेगा, जो भी है रहो में खड़ा,
इक बड़ी हुंकार भर दो, ये लड़ाई सब की है,
ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है... 
 
भूख बनके नोचती थी, चील जैसे बेहया,             
प्यास ने भी सँघ मेरे, कम तमाशा न किया,
आँखों में है खून उतरा, उंगलिया मुठ्ठी बनी,
हो चुके बर्बाद हम तो, अब तबाही उसकी है,
ना तेरी है न मेरी है, ये लड़ाई सबकी है....
 


तारीख: 29.06.2017                                    विजय यादव









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