पिया तुम बिन सावन मै क्या करूँ?

घिर के जो आये कारी बदरिया 
मन मे दु:ख के उठे लहरिया 
पिया तुम बिन सावन का क्या करूँ 
ऐसे भीगे रूत में कैसे धीर धरूँ

ठंडी हवाएं मेरा जिया तरसाए 
बार बार अँखियाँ भर आये 
बरसे बुंद जब तन को भिगाये 
बिरह की अग्नि मे मै जल मरूँ 
पिया तुम बिन सावन का क्या करूँ....

रूठे तुम जब से रुठे सुख सारे 
तुम ही रहे पिया जब ना हमारे 
हम आस भी हारे विश्वास भी हारे 
मिले, तेरे मन मे सारे दु:ख मै भरूँ 
पिया तुम बिन सावन का क्या करूँ......

सुन सजना जो तु लौट के आये 
तरसा जीवन थोडा सुख पाये 
बहुत हुआ ना अब सहा जाये 
कहीं बिरह जान ना ले जाये, डरूँ 
पिया तुम बिन सावन का क्या करूँ
                        


तारीख: 02.07.2017                                    साधना सिंह









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