प्यार स्नेह अपनेपन 


चमकती दुनियां जगमग बाज़ार
बस नदारत हैं जिसके...
पहले गोदाम हुआ करते थे
प्यार स्नेह अपनेपन और रिश्तों के
यह किसी के बटे नहीं थे
सबके लिए थे कुछ ज्यादा कुछ कम
था द्वेष भी, थी विभिन्नताएं भी
रूढ़ी अंतर की दीवारें
कुछ जातिय अंतरभेद
कुछ परम्पराओं के नारे
फिर भी......
इतने सबके बाद भी
जिंदगी में इज़ाद थी
मोहब्बतें जिंदाबाद थी
ख्वाहिशें आज़ाद थी
क्योंकि...
पहले गोदाम हुआ करते थे
प्यार स्नेह अपनेपन और रिश्तों के
आज घर से बाहर तक
सत्ता के गलियारों तक
महलों के जंगल में
रहनुमाओं के मंगल में
झुग्गी झोपड़ी की दहलीज पे
श्मशान और समाधि पे
कहाँ नहीं तलाशा मैंने
और जो नहीं मिला वह था
प्यार स्नेह अपनेपन, रिश्तों का सुराग
जिसके पहले गोदाम हुआ करते थे
और अब..
बटने की दीमख काबिज़ हैं
दिलों दिमाख़ के तैखाने में
ढूंढते ढूंढते सुबहों शाम हो गयी
जिंदगी तलाश में तमाम हो गयी
बस न मिला....
वह पुराना समय, बीते हुआ कल
संग साथ, रिश्तों की मीठी हलचल
कहते हैं...
जिसके पहले गोदाम हुआ करते थे।


तारीख: 16.11.2019                                    नीरज सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है