ऐ डरता मन मुझे बता,
हंसने में क्या बुरा है ?
दिखती तो ठीक-ठीक है हंसी,
मन अच्छा-अच्छा भी करता है,
छिछले आँसू के पीछे आँख ,
तारों की सैर करता है।
सिसके-सिमटे होंठ यूँ ही,
अनजाने से फट जाते हैं,
दातों की लड़ियाँ हो, शायद
गालों पर गूदे आते हैं।
दिल में दुबका फिर वो बुड्ढा,
कागज की नाँव बनाता है,
काली रातों की पर्दों में,
कोई माँ की लोरी गाता है।
नभ में छिछरे-छितरे बादल,
कुछ बातें करनें लगते हैं,
पल-पल, चंचल, चर-चर झिंगुर,
संग मेरे ये भी जगते हैं।
मेरा दिल बहुत परेशान है,
पर बोलूं किससे, जरा बोलो तो!
बाहर मुल्ला क्या कहता है?
समझा तुमने तो बोलो तो!
मुनिसिपल वालों की लैम्पों में,
एक पीला कोना जलता है,
इस सरपट समतल संनाटे में,
एक साया भी नहीं चलता है।