शाम से ही बेबाक सी
हवाये चली वो रात भर
वो आ गयी चटाई पर
अंगड़ाई ली जम्हाई कर
वो करवटो की आड़ में
जगाती रही रात भर
थिरक पड़ी वो उंगलिया
लांघ गयी बेशर्मियां
हम आहटें छिपाते गये
वो उठाती रही रात भर
हम उनमे यूँ सिमट गये
हम अधरों से लिपट गये
और वो..
सपनो का एक थान उठाकर
सुनाती गयी रात भर
वो बूँद बूँद लोरियाँ
पिलाती गयी रात भर
हम थक गए विफल हुए
हम नींद को विकल हुए
वो धीमे धीमे झपकियाँ
बढाती गयी रात भर।