उस गूढ़ रहस्यमयी गीता का मर्म
सदा क्या बस अर्जुन को ही समझाओगे
चौराहे पर लुट रहे चीर हैं
क्या बस द्रौपदी का ही चीर बढाओगे
चौसर की है बिछी बिसातें
शकुनी हर बार जीतता जाता है
धर्मराज का नाम नहीं
हर तरफ से दुर्योधन ही दांव लगाता है
इस बार महाभारत की योजना भी बेकार रहेगी
जो सेना तुम्हारे साथ लड़ी थी, वो आज तुम्ही पर वार करेगी
विश्वास यहाँ नीलाम हुआ हैं और विभीषण आम हुआ है
कलयुग में जो काम आये वो दांव कहाँ से लाओगे
मेरे श्याम कहो कब आओगे, मेरे श्याम कहो कब आओगे