तक़दीर को क्यों रोता है,
तस्वीर बदल जाती है,
कुछ करने की हो चाहत अगर,
मुश्किलें भी झुक जाती है।
ना रुक, ना ठहर,
न सोच बीती बातों को,
तेरी मंज़िल है दूर अभी,
निकल पड़ उसे पाने को।
भुला दे अपनी कमियां,
उनसे तो अब ले ताक़त,
जीतने को सारी दुनिया,
तू कर दे अब सबसे बगावत।
रेहमत तुझपे उस खुदा की,
कभी न रुकने पायेगी,
तू सदा रहेगा ओट में उसकी,
मेहनत ना ज़ाया जायेगी।
दिखा दे अब उनको,
जिनको कभी न तू भाया था,
पहचान बना उस मुकाम पे,
जहाँ कोई पहुँच ना पाया था।
तू है वो पक्षी अमर,
उठ जाता जो अपनी ही राख से,
सृजन की रखता है ताक़त,
अपने अंदर की आग से।।