उस पार देखो कोई आंसुओं से दामन भिगोता है

उस पार देखो कोई आंसुओं से दामन भिगोता है......
हाथ में मशाल लिए, दर्द का उबाल लिए 
नियति की कठोरता पे, आज विश्व रोता है
 
प्रकृति के आघात से तिलमिलाया इंसान है 
ना जीवन हैं  हैं ना प्राण हैं,
धरती कुरुक्षेत्र सी हुई लहू-लुहान है

बीता वक्त अपने साथ हज़ारों सपने ले गया,
रोता छोड़ बेबसों को, उनके अपने ले गया 

पीड़ित स्वर हर दिशा से होता प्रतिध्वनित आज है
इस अंतर्मन की विवशता का ना कोई ठहराव हैं 


हे प्रभु ये मेरे किस कर्म का उपहार हैं......
हिमालय की तलहटी पे.......
क्या तुमने किया कोई शंखनांद हैं ......
 


तारीख: 15.06.2017                                    अदिति पंकज









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