वो मुझ जैसी लगती है

वो मुझ जैसी लगती है या
मैं उस जैसा लगता हूँ
वो इतनी सुन्दर है या
मैं ही इतना सुन्दर हूँ|

खो गया उसके सपनो में
तंग आ गया हूँ जीवन से
क्या वो मुझको  मिलती है या
मैं ही उसको मिलता हूँ|

सालों बरस बीत गए
अभी तक खाली हाथ हूँ
वो अपनी जेब टटोलती है या
मैं ही जेब टटोलता हूँ|

उसकी एक नज़र से ही मैं
सालों-साल काट रहा
बस एक आस में बैठा हूँ
वो मेरा हाथ थामती है या
मैं ही हाथ थामती हूँ|

जब वो पास आती है
तो समय ठीक रुक जाता है
सोच पड़ता हूँ तभी मैं
वो समय को रोकती है या
मैं समय को रोक देता हूँ|

राह मिली तो चलता हूँ
उसको साथ ले जाता हूँ
वो मुझको राह दिखाती है या
मैं उसको राह दिखाता हूँ|

सपने में है वो ही आती
आराम की नींद मैं सोता हूँ
वो मुझको नींद सुलाती है या
मैं उसको नींद सुलाता हूँ|

सामने में है वो बैठी
देख-देख के निहारता हूँ
अभी भी असमंजस में हूँ
वो मुझको  निहारती है या
मैं उसको  निहारता हूँ|

वो मुझको मिल न पाई
कोई अफ़सोस नहीं है मुझे
जिंदगी सलामत रहे
वो मुझको दुआ देती है या
मैं उसको दुआ देता हूँ|

अब बस जिंदगी कहती चली रही है

“वो मुझ जैसी लगती है या
मैं उस जैसा लगता हूँ
वो इतनी सुन्दर है या
मैं ही इतना सुन्दर हूँ”
 


तारीख: 21.06.2017                                    गोविन्द राम डबराल









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