प्रेम को बाँधा जा सकता है
गिटार की तार से
यह प्रश्न उस दिन हवा में टँगा रहा
मैंने कहा -
प्रेम को नहीं
यादों को बाँधा जा सकता है
गिटार की तार से
यादें तो बँधी ही रहती है -
स्थान , लोग और मौसम से
काम से घर लौटते हुए
शहर ख़ूबसूरत दिखने लगता था
स्कूल के शिक्षक देश का नक्शा दिखाने के बाद कहते थे
यह देश तुम्हारा है
कभी संसद से यह आवाज नहीं आयी
की यह रोटी तुम्हारी है
याद है कुछ लोग हाथों में जूते लेकर चलते थे
सफर में कुछ लोग जूतों को सर के नीचे रख कर सोते थे
उन लोगों ने कभी क्रांति नहीं की
पड़ोस के बच्चों ने एक खेल ईज़ाद किया था
दरभंगा में
एक बच्चा मुँह पर हथेली रख कर आवाज निकालता था -
आ वा आ वा वा
फिर कोई दूसरा बच्चा दोहराता था
एक बार नहीं दो बार -
आ वा आ वा वा
रात की नीरवता टूटती थी
बिना किसी जोखिम के
याद है पिता कहते थे -
दिन की उदासी का फैलाव ही रात ।