ज़िन्दगी – एक अजीब पहेली

जिन्दगी का भी अजीब खेला है 
जो चाहा वो कभी नही मिला है

और जो मिला है,वो कभी नहीं सोचा था
जो सोचते हैं वो कभी कर नहीं पाते 
और जो करते हैं वो कभी समझ नहीं पाते 

कैसे –कैसे मोड़ पर लाती है 
कहाँ से कहाँ ले जाती है 

नदी की तरह पथरीले रास्तों पर दौड़ती है 
कभी हवा की तरह तेज चलना सिखाती है
 
लहरों की तरह उठना सिखाती है कभी 
पेड़ों की तरह खड़े रहना सिखाती है कभी 
झरनों की तरह नीचे गिराती है कभी 

जो समझ गए तो जीत जाओगे 
जो न समझे तो सीख जाओगे 
सबकी अपनी –अपनी पहेली है, जिंदगी  


तारीख: 30.06.2017                                    महिमा चौधरी









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